'घर वापसी' और 'राम मंदिर' पर संघ मौन!
- रोहित घोष
- कानपुर से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उसके सहयोगी संगठनों और उससे जुड़े लोगों के विवादास्पद बयान थम गए हैं.
इसकी एक बानगी कानपुर में संघ की चार दिवसीय बैठक में देखने को मिली.
संघ जिन मुद्दों को उठाने के लिए आमतौर पर जाना जाता है, कानपुर में उनमें से किसी पर ज़्यादा कुछ सुनने को नहीं मिला. इसी बीच एक मुस्लिम संगठन 'ऑल इंडिया सुन्नी उलेमा काउंसिल' के नेताओं ने बैठक में आए सरसंघ चालक मोहन भागवत से मिलने का समय मांगा.
काउंसिल महामंत्री मोहम्मद सलीस ने बीबीसी को बताया कि वे सरसंघ चालक से छह सवाल पूछना चाहते थे.
छह सवाल
मोहम्मद सलीस के सवाल थे, "क्या संघ मुल्क को हिंदू राष्ट्र मानता है? हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए क्या कोई खाका तैयार है? हिंदू राष्ट्र हिंदुओं के मज़हबी ग्रंथों के मुताबिक़ होगा या संघ ने कोई नया फ़लसफ़ा तैयार किया है?''
बाक़ी तीन सवाल थे, ''घर वापसी पर संघ क्या चाहता है? मुसलमानों से किस तरह का राष्ट्र प्रेम चाहता है? संघ इस्लाम को किस नज़रिए से देखता है?"
मुस्लिम नेताओं को भागवत से मिलने का समय नहीं मिला, पर संघ की तरफ़ से उनके मुस्लिम इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंद्रेश मुस्लिम नेताओं से मिले.
सतही मुसलमान!
इंद्रेश का कहना था, ''जनसभा बुला लीजिए, उसमें दूंगा सभी सवालों के जवाब."
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भागवत सवालों से बचना चाहते थे, इसलिए नहीं मिले.
सलीस ने बीबीसी से कहा, "अगर हम सतही मुसलमान होते, तो शायद भागवत हमसे मिल लेते. पर हमें वो सवाल पूछने हैं जिनका जवाब इस देश का हर मुसलमान चाहता है."
शक्ति प्रदर्शन!
चार दिन तक चली 'राष्ट्र रक्षा संगम' बैठक में भागवत ने कोई बात नहीं कही जिसे विवादास्पद कहा जा सके.
रविवार को सरसंघ चालक ने भाषण में कहा कि जो लोग संघ को नहीं जानते और दूर से देखते हैं, वह स्वयंसेवकों के आयोजनों को शक्ति प्रदर्शन कहते हैं.
भागवत ने कहा, "यह शक्ति प्रदर्शन नहीं आत्मदर्शन है."
हिंदू छवि
एक कार्यकर्ता ने बीबीसी को बताया, "संघ मुख्यतः हिंदुओं का संघठन है और उसके मंच पर जो भी बातें कही जाती हैं, उसे हिंदुओं के पक्ष की बात मानी जाती है. पर कानपुर में भागवत जी ने हिंदुओं से जुड़े मुद्दों पर खुलकर कुछ नहीं कहा, जैसे अयोध्या में राम मंदिर या घर वापसी."
कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार रमेश वर्मा कहते हैं, "दिल्ली चुनाव से पहले भाजपा ने कट्टर हिंदू की छवि पेश करने की कोशिश की. अपशब्दों का इस्तेमाल हुआ पर दिल्ली में पार्टी को मुँह की खानी पड़ी. पांसा पलट गया. इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग अब सतर्क हैं. पर सिर्फ़ सतर्क हैं."
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