जेटली के बजट को 10 में से कितने नंबर?

मोदी सरकार के पहले पूर्ण बजट को लेकर कई दिनों से मीडिया में अटकलें और आकलन छाए थे. और अब जब बजट सामने आ गया है तो बीबीसी हिंदी ने मीडिया के आर्थिक विशेषज्ञों से बात की और पूछा कि वे इस बजट को दस में से कितने अंक देेंगे.

आलोक जोशी, कार्यकारी संपादक, सीएनबीसी आवाज़- 10 में से 8.5 अंक

आलोक जोशी का कहना है कि सरकार थोड़ी और महत्तवकांक्षी हो सकती थी

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बजट से पहले रेल बजट और आर्थिक सर्वेक्षण में ही सरकार का आत्मविश्वास दिख रहा था. यहां ये कुछ और मज़बूत दिखता है.

ये बहुत बड़े इरादों का बजट है. कुछ ऐसे फैसले हैं जिनका असर समझने में ही अभी लोगों को कुछ वक्त लगेगा, मगर जो बहुत बड़े फैसले हैं.

फिर भी ऐसा लगता है कि इतने बड़े जनादेश के साथ आई सरकार को जितना हौसला दिखाना चाहिए था जितने कड़े फैसले करने चाहिए थे उनमें थोड़ी सी कसर तो रह ही गई है.

हां सबको खुश करने की कोशिश की गई है, सभी चीजों को थोड़ा थोड़ा छूकर ज़रूर दिखाया गया है ताकि कोई ये न कह सके कि आपने ये नहीं किया या वो नहीं किया.

जोज़ी जॉन, पूर्व प्रबंध संपादक, बिज़नेस टुडे - 10 में से 7 अंक

जोज़ी ज़ॉन का कहना है कि ये बजट विनिर्माण क्षेत्र के लिए अच्छी ख़बर है

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इस बजट में विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र को ध्यान में रखा गया है. पिछली एनडीए सरकार का भी यही मंत्र था, तो ऐसा लग रहा है कि वे अपनी पिछली नीतियों को वापस लाने की सोच रहे हैं.

साथ ही साल 2022 तक जो सात करोड़ घर बनाने की बात कही गई है, उससे लोगों को तो फ़ायदा होगा ही, साथ ही विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा.

ये सरकार आर्थिक बढ़त पर बहुत ध्यान देती दिख रही है. भारत में बिज़नेस करना आसान बनाना भी इस बजट का एक फ़ोकस लग रहा है.

लेकिन वो प्रत्यक्ष टैक्स पर ज़्यादा ध्यान देते नहीं दिख रहे हैं. हर साल की तरह उन्होंने सर्विस टैक्स बढ़ा दिया. मुझे उम्मीद ये थी कि ये सरकार टैक्स जुटाने के कुछ नए तरीके ढूंढ़ेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

इसके अलावा मुझे संशय ये भी है कि 2022 तक सात करोड़ घर बनाने का लक्ष्य सरकार कैसे पूरा कर पाएगी? ख़ैर वो आने वाले सालों में पता चल ही जाएगा.

अनिल पद्मनाभन, उप प्रबंध संपादक, मिंट - 10 में से 8 अंक

अनिल पद्मनाभन का कहना है कि मोटे तौर पर ये एक अच्छा बजट है
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जिस परिस्थिति में ये बजट लाया गया है, मुझे लगता है कि ये भाजपा सरकार के लिए एक मौका था अपनी दूरदर्शिता दिखाने का और उन्होंने ये बहुत खूबी से किया.

अरुण जेटली ने बहुत सी घोषणाएं एक दम से लागू करने की बात नहीं की, जो एक अच्छी बात है और पिछली सरकार से अलग रवैया है.

गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी को अगले साल अप्रैल से लागू करने की बात कही, कॉरपोरेट टैक्स को घटाने के लिए चार साल का समय रखा.

मध्यम वर्ग के लोगों के लिए उन्होंने कोई छूट देने की बात नहीं की बल्कि उनकी बचत को बढ़ावा देने की बात की, यानी उन्हें आगे जाकर फ़ायदा होगा.

भारत में बहुत कम कंपनियां हैं जो पेंशन देती हैं, तो ऐसे में कामकाजी लोगों के लिए ये कहना कि अगर आप बचत करोगे तो आपको पेंशन मिलेगी, अच्छी बात है.

ग़रीबों के लिए उन्होंने कहा है कि साल 2022 तक हर व्यक्ति को इस देश में घर में रहने की बुनियादी सुविधाएं मिलेंगी.

तो ये साफ़ है कि वो भारत की आर्थिक बढ़त में नए साझेदार लाने की कोशिश कर रहे हैं.

सुमित गुलाटी, संपादक, इकॉनॉमिक टाइम्स ऑनलाइन - 10 में से 8.5 अंक

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भारतीय अर्थव्यवस्था में जिस तरह की दिक्कतें इस सरकार ने विरासत में पाईं थीं, उनके बावजूद अरुण जेटली ने विनिर्माण के लिए और ग़रीबों के लिए बजट में पैसा निकाला.

इसके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर को भी उन्होंने एक बहुत ही साफ़ दिशा दी है ये कह कर कि अगले चार सालों में वो कॉरपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर देंगें, जो अच्छी बात है.

साथ ही कुछ मूलभूत मुद्दों को भी उन्होंने बजट में संबोधित किया है. जैसे कि उन्होंने कहा कि वो एक बैंकरप्सी क़ानून लाएंगे. कॉरपोरेट जगत के ख़िलाफ़ जो कोर्ट में केस चल रहे हैं, उन्हें फ़ास्ट ट्रैक करवाने की बात कही अरुण जेटली ने. काले धन को लेकर भी उन्होंने एक इरादा जताया कि वे इस मुद्दे से निपटने के लिए क़ानून लाएंगे.

भारतीय लोग सोना बहुत खरीदते हैं, तो उस सोने को बाज़ार में कैसे लाभदायक बनाया जाए, उसके लिए भी उन्होंने कदम उठाने की बात कही है.

तो मुझे लगता है कि उनका दृष्टिकोण बहुत दूरदर्शी है.

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