एक तस्वीर...जिसने जीती वैचारिक जंग

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रूपी कौर

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कनाडा में रहने वाली भारतीय मूल की रूपी कौर ने कुछ दिन पहले माहवारी के दौरान अपने कपड़ों और बिस्तर की एक तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की. तब उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि फ़ोटोशेयरिंग वेबसाइट उस तस्वीर को हटा देगी.

इंस्टाग्राम ने उनकी तस्वीरें एक नहीं, दो बार ये कहकर हटा दी कि ये फ़ोटो वेबसाइट की कम्युनिटी गाइडलाइंस के अनुरूप नहीं है.

लेकिन टोरंटो निवासी रूपी कौर ने वेबसाइट के फ़ैसले को चुनौती दी. आख़िरकार इंस्टाग्राम ने उनसे माफ़ी माँगी और माना कि रूपी ने ये तस्वीर पोस्ट करके किसी गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं किया है.

लेकिन तब तक इस तस्वीर की कहानी दुनिया भर में चर्चा का विषय बन चुकी थी- कुछ समर्थन में आए तो कुछ विरोध में.

पढ़ें, तस्वीर की कहानी, रूपी की जुबानी

"इस तरह की तस्वीरें पोस्ट करने की कोई ज़रूरत नहीं है. क्योंकि आने वाले समय में दुनिया को महिलाओं की ही कोई ज़रूरत नहीं रहेगी. और हम अपने बच्चे प्रयोगशाला में ही पैदा करेंगे और पालेंगे. इसलिए मासिक धर्म पर चर्चा की कोई ज़रूरत ही नहीं रहेगी."

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ग़ुस्से से भरी ये प्रतिक्रिया एक व्यक्ति ने तब दी, जब मैने माहवारी से जुड़ी एक तस्वीर इंस्ट्राग्राम पर डाली. एक पुरुष ने तो मुझे मौत की धमकी भी दी.

मुझे हंसी भी आई कि आख़िर ऐसी क्या बात है कि लोग मुझे मारना चाहते हैं ?

सोशल मीडिया पर हंगामा

मैं दरअसल एक आर्ट प्रोजेक्ट कर रही हूं. मेरी मंशा थी कि मैं महिलाओं के मासिक धर्म से संबंधित वर्जनाओं को तोड़ने के कोशिश करूँ. जिस तस्वीर को लेकर इतना हंगामा हुआ वो मैंने अपने कोर्स के तहत प्रोजेक्ट के लिए तैयार की थी.

जब क्लासरूम में और विश्वविद्यालय में मैने इसे शेयर किया था तो सभी को यह पसंद आई. शायद ऐसा इसलिए कि हम सभी लोग इस तरह के विषयों पर मिलकर पढ़ाई कर रहे हैं.

लेकिन मैं समझना चाहती थी कि असल दुनिया में लोग इसे कैसे देखते हैं. तब मैंने इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया, जैसे इंस्टाग्राम और टंबलर.

जैसे ही मैने तस्वीर इंस्टाग्राम पर पोस्ट की तो हंगामा मच गया. मुझे इस प्रकार की प्रतिक्रिया की कोई उम्मीद नहीं थी.

शायद इंस्टाग्राम ऐसी जगह है जहां लोग सिर्फ़ 'सेक्सी तस्वीरें', सुंदर चेहरे और ग्लैमर को ही देखना चाहते हैं, मासिक धर्म जैसी हक़ीक़त नहीं.

'अपवित्र नहीं है मासिक धर्म'

मासिक धर्म धर्म सामान्य बात है. दुनिया की आधी आबादी को नियमित मासिक धर्म होता है. फिर भी हम इस बात से अनजान रहने की कोशिश करते हैं.

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हमें लगता है कि अगर औरत को ऐसा होता है तो यह बात प्राइवेट ही रखी जानी चाहिए. भारत में तो शायद केवल पंद्रह से बीस प्रतिशत महिलओं को सैनिटरी नैपकिन नसीब होता है. कहीं-कहीं पर महिलाएं रेत, पत्ते जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करतीं हैं.

इससे यौन संक्रमण या इससे संबंधित बीमारियों का ख़तरा रहता है. इससे कम उम्र में महिलाओं की मौत भी हो सकती है.

महिलाओं के लिए यह शर्म की बात बताई जाती है.

मैं तो तीन साल की थी जब मैं पंजाब से कनाडा आ गई थी. लेकिन कई लोगों ने बताया है कि उन्हें गुरुद्वारे में सेवा नहीं करने दी जाती क्योंकि माहवारी के दौरान उन्हें अपवित्र समझा जाता है.

लेकिन मेरी नज़र में ये वो समय होता है जब महिलाएं सबसे अधिक पवित्र होती हैं, क्योंकि उनका शरीर गंदगी का त्याग करता है.

मेरी कुछ मुस्लिम दोस्तों को भी इन दिनों प्रार्थना करने की इजाज़त नहीं होती. तस्वीर को पोस्ट कर मैं इन विषयों पर चर्चा छेड़ना चाहती थी कि आख़िर लोग ऐसा सोचते क्यों हैं?

इंडियाज़ डॉटर से झटका क्यों?

कड़वी सच्चाई यही है कि बहुत से मर्द एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ उन्हें लगता है कि उनके पास ताक़त है और वे इस ताक़त को महिला के साथ बाँटना नहीं चाहते.

निर्भया कांड के दोषियों को फांसी देने की मांग को लेकर प्रदर्शन करती महिलाएं.

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निर्भया पर बनी डॉक्युमेंटरी 'इंडियाज़ डॉटर' में कई लोगों ने कहा कि उन्हें झटका लगा कि बलात्कार का दोषी किस तरह की बातें कर रहा है.

पर क्या वाकई इसमें झटका लगने जैसा कुछ था? दुनिया में ऐसे कई पुरुष हैं जो इसी मानसिकता के साथ रहते हैं कि महिलाओं का अपने ही शरीर पर कोई अधिकार नहीं.

इसी वजह से यह ज़रूरी है कि इस तरह की तस्वीरें पोस्ट की जाएं, ऐसे वीडियो और बनाए जाएं जो समाज की सोच को चुनौती दें.

बोलने की आज़ादी

नारीवाद के सबके अपने-अपने मायने हैं. मुझे जो लगा मैने कहा. भारत में बैठी किसी महिला का संदेश मुझसे अलग हो सकता है क्योंकि उसकी संस्कृति और समस्याएँ अलग हैं.

दिल्ली में आयोजित एक प्रदर्शन में भाग लेती महिला

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अगर वाकई औरतों का सशक्तिकरण करना है तो ये बहुत ज़रूरी है कि उनकी बात खुलकर सामने आए.

मैं मानती हूँ कि ऐसा करने पर कुछ लोग नाराज़ हो सकते हैं.

माहवारी से जुड़ी तस्वीर पोस्ट करने के बाद मुझे भी बहुत लोगों ने बहुत भला-बुरा कहा. इस विवाद के बाद मुझे लगा कि लोग मुझे एक पुतले की तरह देखने लगे हैं, न कि एक इंसान की तरह. या फिर इससे उलट वे आपके अस्तित्व को रोमांटिसाइज़ करने लगते हैं.

इस सबके बावजूद मैं अपनी बात पर कायम हूँ. मैने अपनी बात रख दी है, लेकिन एक इंसान पूरी दुनिया की बात नहीं कर सकता.

इसलिए दूसरी महिलाओं को भी आगे आकर अपनी आवाज़ बुलंद करने की ज़रूरत है.

(रूपी से बीबीसी संवाददाता वंदना की हुई बातचीत पर आधारित.)

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