जहाँ राज कपूर को भी थप्पड़ पड़ा..

  • मधु पाल
  • मुंबई से, बीबीसी हिंदी के लिए
राजकपूर और नर्गिस

इमेज स्रोत, ULTRA DISTRIBUTRS PVT LTD

रणबीर राजकपूर न केवल भारत में पसंद किए जाते थे बल्कि राजकपूर की फ़िल्मों ने रूस, चीन, अफ्रीकी देशों में भी काफी धूम मचाई.

उनकी फ़िल्मों के हिंदी गाने भी काफ़ी लोकप्रिय रहे. हाल ही में चीन का दौरा कर चुके अभिनेता आमिर ख़ान कहते हैं कि चीन में भी ख़ासे लोगों ने राजकपूर की फ़िल्में देखी हैं. आज भी वहां के लोग फ़िल्म आवारा को देखना पसंद करते हैं.

वर्ष 1971 में राजकपूर को पद्मभूषण और वर्ष 1987 में हिन्दी फ़िल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फालके से सम्मानित किया गया.

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ राजकपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद.

इमेज स्रोत, mohan churiwala

इमेज कैप्शन, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ राजकपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद.

बतौर अभिनेता उन्हें दो बार, बतौर निर्देशक उन्हें चार बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

वर्ष 1985 में राजकपूर निर्देशित अंतिम फ़िल्म 'राम तेरी गंगा मैली' प्रदर्शित हुई. इसके बाद राजकपूर अपनी महत्वकांक्षी फिल्म 'हिना' के निर्माण में व्यस्त हो गए लेकिन उनका सपना साकार नहीं हुआ और दो जून 1988 को इस दुनिया से चल बसे.

लता मंगेशकर ने राजकपूर साहब के लिए कई बेहतरीन गाने गाए और इतने सालों बाद भी लता मंगेशकर राजकपूर को याद करते हुए कहती आई हैं कि बॉलीवुड के शोमैन राजकपूर न सिर्फ एक अच्छे फ़िल्मकार, अभिनेता थे बल्कि अच्छे संगीतज्ञ भी थे.

उन्होंने कहा कि राजकपूर को संगीत की गहरी समझ थी और उनकी फिल्मों में भी संगीत की अहम भूमिका होती थी.

तीस के दशक में 'बॉम्बे टॉकीज़' एक बहुत बड़ा नाम हुआ करता था. हिमांशु राय, राजनारायण दुबे और देविका रानी ने फ़िल्म स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज़ की नींव रखी थी.

इस स्टूडियो ने कई मशहूर कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया. दिलीप कुमार, मधुबाला, राजकपूर, किशोर कुमार, सत्यजीत रे, बिमल रॉय और देव आनंद जैसे सितारों ने अपने करियर की शुरुआत इसी बॉम्बे टॉकीज़ से की थी.

बॉम्बे टॉकीज़ के संस्थापक रहे स्वर्गीय राजनारायण दुबे के पोते अभय कुमार बताते हैं, "मेरे दादा जी कहते थे कि बॉम्बे टॉकीज़ में जिसने भी थप्पड़ खाया, उसे सफलता मिली. राजकपूर को भी थप्पड़ पड़ा."

उन्होंने बताया, "राजकपूर फ़िल्म ज्वारभाटा कि शूटिंग कर रहे थे. केदार शर्मा उस फ़िल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर थे. जब वो शूट पर क्लैप कर के शूट शुरू करने के लिए बोलते थे तब-तब राजकपूर कैमरे के सामने आकर बाल ठीक करने लग जाया करते थे. दो-तीन बार देखने के बाद केदार शर्मा ने उन्हें एक थप्पड़ लगा दिया. फिर उन्हीं केदार शर्मा ने अपनी फ़िल्म नीलकमल में राजकपूर को मधुबाला के साथ लिया. उस थप्पड़ ने राजकपूर की किस्मत ही बदल कर रख दी."

राजकपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार के बीच बहुत गहरी मित्रता थी. ये तीनों जब भी मिलते तो खूब बाते करते. कुछ बातें उनकी फ़िल्मों की होती तो कुछ उनकी निज़ी ज़िन्दगी की.

ऐसी ही कुछ बातों को याद कर स्वर्गीय देवानंद के निकटतम सहयोगी मोहन चूरीवाला कहते हैं, "मुझे आज भी याद है, देव साहब ने मुझे बताया कि कैसे दिलीप कुमार की शादी में सब शामिल हुए थे और शादी के बाद जब सायरा बानो जी अपने कमरे में दिलीप साहब का इंतज़ार कर रही थीं तब कैसे दिलीप साहब को राजकपूर और देव साहब उन्हें उनके कमरे के बहार तक छोड़ा था."

राजकपूर और देव आनंद

इमेज स्रोत, Mohan Churiwala

इतना ही नहीं राजकपूर साहब आर के स्टूडियो में अपना मेकअप रूम किसी और को इस्तेमाल नहीं करने देते थे लेकिन सिर्फ देव साहब को ही इज़ाज़त थी कि उस मेकअप रूम को इस्तेमाल कर लें.

दिलीप कुमार, राजकपूर और देव आनंद

इमेज स्रोत, Mohan Churiwala

राजकपूर के आरके स्टूडियो में देव साहब की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी.

इतना ही नहीं जब देवानंज की फ़िल्म गाइड रिलीज़ हुई थी तब राज कपूर लंदन में थे. जैसे ही लंदन से लौटे, बिना वक़्त देखे उन्होंने रात 2 बजे देव साहब को टेलीफ़ोन लगाया और उन्हें गाइड फ़िल्म के प्रिंट घर पर भेजने को कहा.

मोहन चूरीवाला के अनुसार, पूरी फ़िल्म देखने के बाद राजकपूर ने सुबह 6 बजे फ़ोन किया और बधाई देते हुए कहा था- 'दोस्त कल जब हम लोग नहीं रहेंगे तब हमारी फ़िल्मों से हमें सब याद करेंगे.'

मोहन चूरीवाला आगे बताते हैं कि कैसे राजकपूर के जन्म दिन पर उनके घर पर पार्टी होती तो देव साहब और दिलीप साहब का जाना निश्चित होता था, अपना सारा काम छोड़-छाड़ कर...

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)