खुला ख़त, प्रधानमंत्री मोदी के नाम...
- मधुकर उपाध्याय
- वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
आदरणीय प्रधानमंत्रीजी,
ईश्वर से हाथ जोड़कर विनती है कि वह आपको लंबी उम्र दे. आप स्वस्थ रहें. काया निःरोगी रहे और मन प्रसन्न रहे. उसमें नए-नए विचार आते रहें और आप उन्हें कार्यरूप देते रहें.
देश की सामूहिक कामना है कि आपमें अपरिमेय प्रतिभा और विलक्षण शक्तियों का भंडार हो, जिसकी कोई कमी आप में वैसे ही नहीं है. यह उस क्षमता की विलक्षणता ही थी कि आप देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पद तक पहुंचे. प्रधानमंत्री बने.
तक़रीबन 31 प्रतिशत मतदाताओं ने 2014 के आम चुनाव में इस विलक्षण प्रतिभा को पहचाना. आपको वोट दिया. बचे हुए 69 फ़ीसदी लोगों के लिए प्रार्थना है कि ईश्वर उन्हें भी ऐसी दृष्टि दे.
प्रधानमंत्रीजी, आपके तमाम महक़मे बचे हुए लोगों तक पहुंचने के काम में लगे हैं लेकिन सिर्फ़ उनके भरोसे बैठना ठीक नहीं होगा. वे लोग, यक़ीनन, दिन-रात एक किए हुए हैं पर, जैसा कि आप जानते हैं, कुछ विघ्नसंतोषी भी हैं. अंदर और बाहर, दोनों जगह.
जो कहते हैं कि साक्षी, साध्वी, स्वामी या गिरिराज जैसे लोग आपकी शह पर काम कर रहे हैं, दरअसल आपको नहीं जानते. आपकी प्रतिभा को कम करके आंक रहे हैं. जिन्हें आपका अतीत नहीं पता, आपका भविष्य क्या जानेंगे? वे ख़ुद अपने भविष्य को अतीत बना रहे हैं.
वैसे, भारत का प्रधानमंत्री बनना कोई आसान काम नहीं है. उसे व्यवस्थित रखना और चलाना सरल नहीं है. इतिहास गवाह है कि हमेशा कोई अति-प्रतिभावान व्यक्ति ही इस पद पर आसीन हुआ है.
जवाहरलाल की प्रतिभा एक गुलाब की तरह खिली रहती थी, शास्त्री की किसान में थी और इंदिरा की बेलछी के हाथी में. मोरारजी रस्सी पर लटककर समुद्र पार कर गए और राजीव ने तो कमाल ही किया.
छुट्टी मनाने परिवार के साथ कावाराती गए, लक्षद्वीप में. वहां समुद्र में एक विशाल, ह्वेल जैसी, मछली को अकेले बचा लिया. यह उनका विलक्षण जीव-प्रेम था वरना बेचारी मछली उथले पानी में तड़प-तड़पकर मर गई होती.
कहां तक गिनाएं पूर्ववर्तियों की प्रतिभा को. वाजपेयी बस में बैठकर लाहौर चले गए, जैसे दिल्ली से गाज़ियाबाद जाना हो. नरसिंहराव की नींद इतनी पक्की थी कि मस्जिद गिराई गई और उनकी आंख नहीं खुली. मनमोहन ने अल्पभाषी होने का कीर्तिमान बनाया.
तब जाकर बोलते-बोलते आप आए. लोगों को लगा कि न बोलने से देश को हुई दस साल की अपच का इलाज आप ही कर सकते हैं. कहने की ज़रूरत नहीं है लेकिन कहना पड़ेगा कि आपने उन्हें निराश नहीं किया. धाराप्रवाह बोलते रहे. बोले जा रहे हैं.
प्रधानमंत्रीजी, आप कितने ज्ञानी और सूचना के कितने बड़े भंडार हैं, कई नासमझ नहीं जानते. सूचना के लिए आप नींद में भी जागते रहते हैं. ऐसी लगन और तत्परता है कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते रात सवा तीन बजे उठकर आपने सूचना प्राप्त की.
आप ख़ुद न बताते तो इन अज्ञानी लोगों को पता ही न चलता कि उस रात क्या हुआ था. किसी परिचित का फ़ोन आया कि बड़े धमाके जैसी आवाज़ हुई. शायद रेल दुर्घटना हो क्योंकि रेल पटरी पास थी. डीएम, एसपी और दीगर आला अधिकारी बेख़बर सो रहे थे. आपने बीस मिनट में राहत और बचाव दल वहां पहुंचा दिया.
यह कोई अकेली घटना नहीं है, ऐसा लगातार होता रहा है. आपने ख़ुद कहा- ‘मुझे सूचना इसलिए मिल जाती है कि मैं लोगों से जुड़ा रहता हूं.’
हफ़्ता भर पहले सबने इसका नमूना फिर देखा. नेपाल में भूकंप आया, पूरी दुनिया हिल गई लेकिन आपके गृहमंत्री बिल्कुल नहीं हिले. उन्हें इसकी ख़बर आपने दी.
वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर
समाप्त
प्रधानमंत्रीजी, सब जानते हैं कि आपकी यह विलक्षण सूचना संग्रहण-वितरण क्षमता केवल भारत तक सीमित नहीं है. उसका पसार राष्ट्रीय सीमाएं पार करता है और उसे करना भी चाहिए.
जिस समय भूकंप आया, नेपाल के प्रधानमंत्री, सुशील कोइराला सरकारी दौरे पर थाइलैंड में थे. आपकी चिड़िया ‘ट्वीट’ ने उन्हें ख़बर दी. फ़ोन पर बात हुई और बचाव-राहत का काम फ़ौरन शुरू हो गया. आपकी तत्परता न होती तो सोचिए, वहां क्या हाल हुआ होता.
राजनीति और कूटनीति की मर्यादाएं अपनी जगह हैं लेकिन लोगों की जान बचाना और राहत पहुंचाना इन मर्यादाओं या औपचारिकताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. इस तरह की आलोचनाओं की आप बिल्कुल परवाह मत करिएगा.
बाक़ी सब कुशल है. देश अपनी गति से चलता रहता है, सो चल रहा है. थोड़ी बहुत समस्याएं कहां नहीं होतीं. यहां भी हैं. कुछ किसान केंद्रित समस्याएं हैं, ज़मीन के मसले हैं और छुट्टी से लौटा विपक्ष भी है. जैसे ही समय मिले, उन्हें देख लीजिएगा.
आप ख़ुद समझदार हैं, सब जानते हैं.
आपका,
एक नागरिक.
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