सलवा जुडुम फिर से लड़ेगा माओवाद के ख़िलाफ़

  • आलोक प्रकाश पुतुल
  • रायपुर से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर में सलवा जुडूम के वे नेता एक बार फिर एकजुट होने लगे हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट अवैध घोषित कर चुका है.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से अवैध घोषित इन नेताओं ने फिर से माओवादियों के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाने की घोषणा की है.

उन्होंने इसके लिए विकास संघर्ष समिति का गठन किया है और आदिवासियों को विकास के प्रति जागरुक करने की बात कही है.

छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इस अभियान को समर्थन देने की बात कही है. हालांकि सामाजिक संगठन इस अभियान के ख़िलाफ़ हैं.

सलवा ज़ुडूम के नेता रहे महेंद्र कर्मा के बेटे छबिन्द्र कर्मा ने ताज़ा अभियान की कमान संभाली है. महेंद्र कर्मा मई 2013 में माओवादियों के एक हमले में मारे गए थे.

छबिन्द्र कर्मा का मानना है कि बस्तर में माओवादियों के कारण विकास की पूरी प्रक्रिया रुकी हुई है.

छबिन्द्र ने बताया, “हम बस्तर के आदिवासियों को माओवाद और आतंकवाद के खिलाफ जागरुक करेंगे. इसके बिना बस्तर का विकास संभव नहीं है.”

सलवा जुडूम की आलोचना

इससे पहले साल 2005 में भी सलवा जुड़ूम यानि शांति यात्रा की शुरुआत जन जागरण के नाम पर ही हुई थी. इसके बाद बस्तर के लाखों आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ा था.

दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों ने सलवा जुड़ूम की आलोचना की.

और आखिर में 5 जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सलवा जुड़ूम को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश जारी किया.

अब एक बार फिर से शुरू हो रहे जनजागरण अभियान को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ता अपनी चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं.

फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के राष्ट्रीय संयोजक प्रवीण पटेल का कहना है कि इस तरह के जनजागरण अभियान का परिणाम पूरी दुनिया देख चुकी है. ऐसे में फिर से इसकी शुरुआत पूरी तरह से ग़लत है.

माओवादियों से ऊब

मानवाधिकार संगठनों की आलोचना के बावजूद छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामसेवक पैंकरा ने बीबीसी से बातचीत में साफ किया कि सरकार सलवा जुड़ूम की तरह ही इस जनजागरण अभियान की भी मदद करेगी.

गृहमंत्री ने कहा, “बस्तर की जनता जागरुक हो गई है. आदिवासियों का शोषण हो रहा है और जनता माओवादियों से ऊब चुकी है. जनता अब माओवादियों को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार हो रही है.”

पहले भी सलवा जुड़ूम के शीर्ष नेताओं में शामिल रहे चैतराम अट्टामी को विकास संघर्ष समिति का संरक्षक बनाया गया है.

भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री अट्टामी ने कहा, “बीजापुर, सुकमा, कोंटा और दंतेवाड़ा के इलाके में सलवा जुड़ूम का नेतृत्व करने वाले एकत्र हुए हैं और हम सब ने विकास के लिए अभियान चलाना तय किया है.”

धीमा पड़ता आंदोलन

छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ कथित जनजागरण अभियान की शुरुआत पहली बार 1991 में की गई थी.

तब कांग्रेस पार्टी के विधायक महेंद्र कर्मा की अगुआई में गांव-गांव में माओवादियों को भगाने के लिए आंदोलन शुरु किया गया था.

लेकिन 5 साल के भीतर यह आंदोलन धीमा पड़ गया और इस आंदोलन की अगुआई करने वाले अधिकांश नेता माओवादियों के हाथों मारे गए.

बाद में 2005 में माओवादियों के खिलाफ फिर से कथित जन जागरण अभियान शुरू हुआ.

दंतेवाड़ा के गांव

महीने भर के भीतर इस आंदोलन की कमान कांग्रेस के नेता महेंद्र कर्मा ने फिर से संभाली और इसे सलवा जुड़ूम यानि शांति यात्रा का नाम दे कर गांव-गांव माओवादियों औऱ उनके समर्थकों पर हमला बोलने का सिलसिला शुरू हुआ.

सरकार के संरक्षण में शुरू हुए इस अभियान में आदिवासियों को हथियार थमाए गए और उन्हें स्पेशल पुलिस आफिसर यानी एसपीओ का दर्जा दे कर माओवादी और उनके समर्थकों से लड़ने के लिए मैदान में उतार दिया गया.

सरकारी आंकड़ों की मानें तो सलवा जुड़ूम के कारण दंतेवाड़ा के 644 गांव खाली हो गए और उनकी एक बड़ी आबादी सरकारी शिविरों में रहने के लिये बाध्य हो गई.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने सलवा ज़ूड़ूम के मसले में सरकार की कड़ी आलोचना की. इसके बाद 5 जुलाई 2011 को सलवा जुड़ूम को पूरी तरह से बंद करने का फैसला सुनाया.

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