वो मर्द जो औरतों के हक़ के लिए लड़े

  • सुशीला सिंह
  • बीबीसी संवाददाता

#100Women में बीबीसी हिंदी ने चुने वो पांच पुरुष जिन्होंने महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई.

साबू एम जॉर्ज

आईआईटी में पढ़ाई के बाद साबू ने अमरीका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में पोषण और स्वास्थ्य सेवा में पढ़ाई की. साबू भारत के गांवों में शोध करना चाहते थे और उन्होंने तमिलनाडु को अपने शोध के लिए चुना.

बच्चों में कुपोषण और शिक्षा पर काम करने के दौरान उनका ध्यान कन्या हत्या के मामलों पर गया. तमिलनाडु में 1994 से 1995 तक उनके सामने सेक्स सेलेक्शन के मामले भी सामने आए.

एक स्वयंसेवी संस्था एसआईआरडी के साथ मिलकर उन्होंने कन्या हत्या के ख़िलाफ़ अपनी मुहिम शुरू की और धीरे-धीरे राज्य में काम रही अन्य संस्थाओं को इस मुहिम से जोड़ा.

इसके बाद उन्होंने कन्या हत्या के ख़िलाफ़ अपने काम का दायरा हरियाणा और पंजाब में भी बढ़ाया. उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए बना पीएनडीटी एक्ट लागू न करने के लिए भारत सरकार और राज्यों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया.

जाने-माने वकीलों की मदद से केस लड़ा. 2001-2002 में स्वास्थ्य मंत्रालय और सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर काम किया. साल 2002 में संसद में पीसी-पीएनडीटी एक्ट में संशोधन करवाया और अब ये क़ानून लागू कराने को लेकर काम कर रहे हैं.

वकीलों की मदद से गूगल, एमएस और याहू पर इंटरनेट पर लिंग चुनाव को लेकर दिए जाने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस दर्ज किया. जिसमें कई में सफलता मिली और अभी लड़ाई जारी.

सुभाष मेंधापुरकर

महाराष्ट्र के शोलापुर के सुभाष ने बचपन में अपने घर और आसपास घरेलू हिंसा की शिकार औरतों को देखा. मां ने आत्महत्या की. सौतली मां ने अस्पताल में दम तोड़ा.

तब से मन में ठाना या तो इसका भागीदार बनें या इसके ख़िलाफ़ काम करें.

सुभाष ने टाटा इंस्टीट्यूट से कम्यूनिटी डेवेलपमेंट में कोर्स किया. एसडब्लयूआरसी तिलोनिया में काम करने के बाद हिमाचल प्रदेश का रुख़ किया. पहले तीन-चार साल विकास का काम.. पौधे, गेंहू के बीज, बकरी के बच्चे बांटे. सिलाई-कढ़ाई की कक्षाएं लीं, वयस्कों को साक्षर करने का काम किया.

महिलाओं से उनके काम का मूल्यांकन करने को कहा और आगे के काम की दिशा मांगी. औरतों के समूह ने शराबबंदी, घरेलू हिंसा के मुद्दे उठाए. 1985 में 'सूत्र' संस्था की शुरुआत की और सोलन के 30 गांवों की महिलाओं ने एक राय से माना कि वो घरेलू हिंसा नहीं सहेंगी और अगर किसी के साथ ऐसी हिंसा होती है तो उसका साथ देंगी.

धीरे-धीरे इस संस्था से औरतें जुड़ती गईं. घरेलू हिंसा के बाद सुभाष ने महिलाओं को लीगल लिटरेसी या क़ानून की जानकारी देनी शुरू की. सात ज़िलों में काम कर रही सुभाष की संस्था से अब हज़ारों की संख्या में महिलाएं जुड़ी हुई हैं.

शफ़ीक-उर-रहमान

शफ़ीक अपने कॉलेज के दिनों में कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ हरियाणा के जींद में निकले एक मार्च में शामिल हुए. सोशल वर्क में पढ़ाई कर रहे शफ़ीक की इस मार्च में हज़ारीबाग की लड़की से मुलाकात हुई. ये लड़की मानव तस्करी की शिकार हुई थी.

दो महीने बाद जब वो वापस लौटे तो उन्हें गांववालों से जवाब मिला ‘बढ़ा दिया’ यानी बेच दिया. इस लड़की ने शफ़ीक के काम की दिशा बदल दी. शफ़ीक ने लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए साल 2006 में 'एम्पावर पीपल' नामक संस्था शुरू की. संस्था ने अब तक 4200 ऐसी लड़कियों को इस मुसीबत से आज़ाद कराया है.

इनमें ज़्यादातर असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और आंध्रप्रदेश की हैं. शफ़ीक की संस्था इनकी घर वापसी कराती है उन्हें प्रशिक्षण देने के साथ आर्थिक रूप से सशक्त करती है.

समरजीत जेना

समरजीत जेना कोलकाता के एक प्रशिक्षण संस्थान में एपीडेमियोलॉजी विभाग में डॉक्टर रहे हैं. इसके तहत वे एचआईवी मरीज़ों के स्वास्थ्य पर काम करते थे.

उन्हें लगा कि स्वास्थ्य सेवाएं, कंडोम देने के साथ इन यौनकर्मी महिलाओं को सशक्त करने की ज़रूरत है. इन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए एक सहकारी बैंक खोलने का विचार उन्होंने रखा.

राज्य में इस मुद्दे पर खूब चर्चाएं-बहस हुईं, जिसके बाद क़ानून के दो अनुच्छेदों में संशोधन किया गया.

1995 में उषा कोऑपरेटिव बना. इसकी 20,000 यौनकर्मी सदस्य हैं जो इसे चलाती हैं. चिट फंड में पैसा लगाकर गंवाने वाली इन यौनकर्मियों को उषा कोऑपरेटिव ने आर्थिक रूप से सशक्त किया. साथ ही उनके बच्चों का भविष्य संवारने में भी मदद दी.

संस्था के प्रमुख सलाहकार हैं समरजीत जेना. ये सहकारी बैंक वर्धमान, हुगली, हावड़ा, कूच बिहार और जलपाईगुड़ी में यौनकर्मियों के लिए काम करती है.

ज्ञानाधर

कबीर धर्म का पालन करने वाले ज्ञानाधर सामाजिक काम में ख़ासी रुचि लेते थे. गांधीवादी विचारक पीवी राजगोपालन से प्रभावित हुए और फिर महिलाओं, उनके अधिकारों, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बारे में प्रशिक्षण लिया. इस दौरान उनके साथ कई महिलाएं जुड़ीं.

उन्होंने बिलासपुर ज़िले के सीपत से काम शुरू किया. गांव-गांव घूमकर महिलाओं के संगठन बनाए, शराब का विरोध किया, बराबर मज़दूरी मांगी. साक्षरता अभियान से महिलाओं को जोड़ा.

'क्षितिज' संस्था चलाने वाले ज्ञानाधर ने चार ज़िलों बिलासपुर, कोरबा, कबीरधाम और कोरिया में महिलाओं को न केवल जागरूक किया बल्कि उन्हें नेतृत्व करना भी सिखाया.

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