'फेसबुक के गंदे मैसेज रोकते हैं मुझे...'
- सुशील झा
- बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
'मैं बहुत कुछ लिखना चाहती हूं...बहुत कुछ बोलना चाहती हूं लेकिन नहीं कर पाती.’
जहां फेसबुक ने कई महिलाओं की आवाज़ बुलंद की है और उन्हें नई पहचान दी है वहीं ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है जो चाह कर भी फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हो पाती हैं.
कई मामलों में पारिवारिक दबाव होता है तो कई मामलों में सामाजिक दबाव काम करता है.
अनुराधा झा जमशेदपुर की हैं और फेसबुक पर एक समय में काफी सक्रिय थीं लेकिन अब लगभग न के बराबर.
वो बताती हैं, "मैं 2010 में फेसबुक पर आई. मैं खूब लिखती थी. लाइफ में जो भी होता था वो शेयर करती थी. लेकिन शादी के बाद अब नहीं करती हूं. बहुत कम एक्टिव हूं. कभी कभार फोटो डाल देती हूं. बस और कुछ नहीं."
तो क्या इसका कारण पति की नाराज़गी है? अनुराधा हंसती हैं और कहती हैं, "आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैं अपने पति से फेसबुक पर ही मिली थी. फिर डेढ़ साल तक परिचय रहा तब शादी हुई. अब वो थोड़ा पोजेसिव हैं मुझे लेकर, तो मना करते हैं. इसे लेकर बहस भी हुई. लेकिन इसके अलावा, जब लड़कियां कुछ लिखती हैं तो उसको अलग ढंग से लिया जाता है."
अनुराधा बताती हैं, "एक बार मैंने किसी फिल्म एक्टर के बारे में पोस्ट लिखा कि मैं इस एक्टर को पसंद करती हूं. इसके बाद मेरे ही फील्ड के एक व्यक्ति ने फ्लर्ट करना शुरु कर दिया. ये अनुभव अच्छा नहीं रहा."
अनुराधा अकेली नहीं हैं. मृग तृष्णा इस तरह के संदेशों से इतना परेशान हुईं कि उन्होंने अपना प्रोफाइल ही बदल दिया.
मृग तृष्णा ने बीबीसी हिंदी से फेसबुक के ज़रिए ही संपर्क किया. फोन पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि मृग तृष्णा के नाम से उनकी प्रोफाइल फेक है, जहां वो अपनी कोई तस्वीर नहीं लगाती हैं क्योंकि वो नहीं चाहती हैं कि लोग उन्हें पहचानें.
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वो कहती हैं, "देखिए मैं पहले अपने नाम से फ़ेसबुक पर थी. हिंदी साहित्य, कविताओं, राजनीति पर लिखती थी. लेकिन जब आप खुलकर लिखते हैं तो लोग समझते हैं कि आप अवेलेबल हैं. कई संदेश इनबॉक्स में आए कि मैं आपके साथ सिगरेट पीना चाहता हूं चांदनी रात में. ये सम्मानित लोग थे मेरी नज़र में...मैं कुछ कह नहीं सकी. ऐसे कई अनुभवों के बाद मैंने प्रोफाइल हटा लिया और दूसरी प्रोफाइल बनाई. फेसबुक ज़रुरत है, दूर रह नहीं सकते, लेकिन अपनी प्राइवेसी बचा कर एक्टिव रहती हूं."
मृग तृष्णा पिछले कुछ सालों से इसी प्रोफाइल से एक्टिव हैं लेकिन अब अपनी ऐसी कोई तस्वीर नहीं लगातीं जिसमें उनका चेहरा दिखता हो. इस तरह से वो अपनी प्राइवेसी भी बचा लेती हैं और लोगों के आपत्तिजनक मैसेजों से भी बच पाती हैं.
निधि शर्मा जामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही हैं.
वो कहती हैं कि फेसबुक आज के जमाने की सच्चाई है और इससे दूर नहीं रहा जा सकता, लेकिन इसके बावजूद लड़कियों के लिए खुलकर लिखना मुश्किल है.
निधि ने उनको आने वाले कई आपत्तिजनक मैसेज बीबीसी के साथ शेयर भी किए जिन्हें हम प्रकाशित नहीं कर सकते हैं.
वो कहती हैं, "मैं ज्यादा लिखती भी नहीं हूं. जो तस्वीरें शेयर करती हूं वो भी दोस्तों के साथ ही करती हूं लेकिन इसके बावजूद गंदे मैसेज आते हैं फेक आइडी से."
लेकिन इससे आपका लिखना कैसे रुक जाता है?
निधि कहती हैं, "अरे जब लिखती नहीं हूं तो इतने गंदे मैसेज आते है, सोचिए राजनीतिक पर टिप्पणी करते हुए कोई पोस्ट लिखी तो और तंग करेंगे लोग. ये डर है. इनबॉक्स में ऐसे लोग भी मैसेज लिखते हैं जो मेरी मित्र सूची के लोगों के दोस्त हैं. मैंने डांटा भी हैं कुछ को. एक दो तो ऐसे लोग हैं जो अच्छा लिखते हैं अपने फेसबुक पर वो भी इनबॉक्स में गंदी बातें लिखते हैं."
निधि बताती हैं कि जब मैसेज में डांटो तो लोग यहां तक कहते हैं कि जब आप चैट में इंट्रेस्टेड नहीं हो तो फेसबुक पर क्यों हो?
निधि बताती हैं कि परिवार का दबाव होता है और वो समझाते हैं कि हम लोग अपनी तस्वीरें न डालें.
निधि कहती हैं कि वो बहुत क्रांतिकारी बातें नहीं लिखना चाहती हैं और न ही कोई बड़ी बात करना चाहती हैं, बल्कि एक आम लड़की की तरह फेसबुक पर रहना चाहती हैं. लेकिन इनबॉक्स के गंदे मैसेज उन्हें परेशान कर देते हैं.
वो कहती हैं कि अगर माहौल बेहतर होता लड़कियों के लिए तो शायद वो ज्यादा लिखतीं, या फिर लिखने के बारे में और ज़रूर सोचतीं.
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