वरिष्ठ कथाकार अमरकांत का देहांत

हिन्दी कथाकार अमरकांत

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हिन्दी के अग्रणी साहित्यकार अमरकांत का सोमवार को इलाहाबाद में निधन हो गया. वे 80 साल के थे.

अमरकांत ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार , सोवियत लैंड नेहरू और व्यास सम्मान जैसे कई लब्धप्रतिष्ठ पुरस्कारों से सम्मानित थे.

अमरकांत के बेटे अरविंद बिंदु ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा, "अमरकांत जी एकदम ठीक थे. उनकी मौत अचानक हुई. इससे पहले उनकी तबीयत ख़राब नहीं थी. हालांकि शारीरिक रूप से उनको थोड़ी परेशानी थी."

हिन्दी साहित्यकार असग़र वजाहत ने अमरकांत के निधन पर शोक जताते हुए कहा, "अमरकांत अपनी पीढ़ी के एक ऐसे कहानीकार थे जिनसे उस समय के युवा कहानीकारों ने बहुत सीखा. वो कहानीकारों में इस रूप में विशेष माने जाएंगे कि एक पूरी पीढ़ी को उन्होंने सिखाया-बताया."

कहानियों की केंद्रीय संवेदना

अमरकांत के कथा साहित्य की चर्चा करते हुए वजाहत ने कहा, "उनकी कहानियों में हम जो संवेदना देखते हैं वो मुख्य रूप से मध्य वर्ग, निम्न मध्य वर्ग, एक वृहत्तर हिन्दी समाज की संवेदना है. उन्होंने इसी को अपनी कहानियों का केंद्रीय विषय बनाया है."

अमरकांत हिन्दी कथा साहित्य में 'दोपहर का भोजन', 'डिप्टी कलेक्टरी', 'ज़िंदगी और जोंक' जैसी कहानियों से चर्चित हुए थे.

अमरकांत का जन्म वर्ष 1925 में उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी.

प्रेमचंद की परंपरा

अमरकांत को प्रेमचंद की परंपरा का कहानीकार माना जाता रहा है.

'सूखा पत्ता', 'आकाश पक्षी', 'काले उजले दिन', 'सुन्नर पांडे की पतोहू', 'इन्हीं हथियारों से' इत्यादि उनके प्रमुख उपन्यास थे.

'इन्हीं हथियारों से' के लिए ही उन्हें साल 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था.

'ज़िंदगी और जोंक', 'देश के लोग', 'मौत का नगर', 'एक धनी व्यक्ति का बयान', 'दुख-सुख का साथ' इत्यादि उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं.

साल 2009 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसी साल उन्हें 'व्यास सम्मान' से सम्मानित किया गया था.

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