नयनतारा सहगल ने लौटाया साहित्य अकादमी
मशहूर लेखिका नयनतारा सहगल ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का फ़ैसला किया है. नयनतारा भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भांजी हैं.
नयनतारा ने एक बयान जारी करके कहा, "सरकार, भारत की सांस्कृतिक विविधता की हिफ़ाज़त करने में नाकाम रही है इस वजह से मैंने ये सम्मान लौटाने का फ़ैसला किया है."
नयनतारा को ये सम्मान साल 1986 में मिला था.
उन्होंने हाल की कुछ हिंसक घटनाओं का ज़िक्र करते हुए नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर भी सवाल उठाए.
उन्होंने बयान में कहा, "जो बुद्धिजीवी अंधविश्वास पर सवाल उठाते हैं, जो हिंदुवाद के ख़तरनाक और विकृत स्वरूप जिसेे हिंदुत्व कहा जाता है उस पर सवाल उठाते हैं उन्हेें हाशिए पर ढकेला जा रहा है, डराया जा रहा है या फिर उनकी हत्या की जा रही है. लोगों के खान-पान की आदतों, उनकी जीवन शैली को अपने हिसाब से प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही हैं."
'इंसाफ़ की हार'
नयनतारा ने आगे लिखा है, "प्रख्यात कन्नड़ लेखक और साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त एमएम कलबुर्गी, सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाबोलकर और गोविंद पांसरे की हत्या कर दी गई. दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं और विचारकों को धमकी दी जाती है कि अगला नंबर आपका है."
"दिल्ली से सटे दादरी में मोहम्मद अख़लाक़ नाम के एक शख़्स का गोमांस खाने की अफ़वाह के बाद बर्बर तरीके से क़त्ल कर दिया जाता है. इन सब मामलों में इंसाफ़ की हार हुई है. उसे घुटनों पर ला दिया गया है."
'पीएम की चुप्पी तकलीफ़देह'
नयनतारा के मुताबिक़, "प्रधानमंत्री इस भय के माहौल में चुप रहते हैं. ऐसे में हमें ये मानना ही पड़ेगा कि वो ऐसे सभी शैतानी काम करने वालों को जो उनकी विचारधारा का समर्थन करते हैं उन्हें अलग-थलग करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं. ये बड़े अफ़सोस की बात है कि साहित्य अकादमी ऐसे समय में बिलकुल मौन है."
"ऐसे में उन सभी भारतीयों के सम्मान में जिनकी हत्या कर दी गई, उन हिंदुस्तानियों के समर्थन में जो विरोध करने के अपने अधिकार का बहादुरी से इस्तेमाल कर रहे हैं और उन सभी लोगों के लिए जो आतंक के इस माहौल में चिंता और भय के वातावरण में जी रहे हैं मैं अपना साहित्य अकादमी सम्मान लौटा रही हूं."
(बीबीसी हिंदी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)