'मुझे कुछ नहीं चाहिए, चाहिए तो केवल इज़्ज़त’

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  • बीबीसी संवाददाता, महेंद्रगढ़ से लौटकर

त्रिपुरा से तीस हज़ार रुपए में ख़रीदकर हरियाणा लाई गई रत्ना पूछती हैं, "आप जैसे इंसान, वैसे मैं भी इंसान. तो इंसान को इंसान समझना चाहिए न?"

बेटियों को बोझ समझकर मां के गर्भ में ही मार डालने का समाधान जिस समाज ने अपनाया हो, उससे रत्ना इंसानियत की उम्मीद कर रही है.

पंजाब-हरियाणा के कई इलाक़ों में जब अनचाही बेटियों से मुक्ति मिल गई तो एक नई समस्या ने जन्म लिया, बहुओं की तलाश मुश्किल होती गई. इसका समाधान भी निकाला गया, यह समाधान भी उतना ही अमानवीय है जितनी समस्या की असली वजह.

बाबा रामदेव हरियाणा के जिस महेंद्रगढ़ ज़िले से आते हैं उसका नाम एक और वजह से रौशन है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की तादाद यहाँ देश भर में सबसे कम है यानी प्रति हज़ार पुरुष के अनुपात में सिर्फ़ 761 महिलाएं हैं.

इस आंकड़े को ऐसे भी समझा जा सकता है. लगभग दस लाख की आबादी वाले महेंद्रगढ़ से दो लाख से अधिक लड़कियां लापता हैं, उनकी ख़ाली जगह भरने के लिए रत्ना जैसी लड़कियां मवेशियों की तरह, और अक्सर मवेशियों से भी कम क़ीमत में ख़रीदी-बेची जा रही हैं.

28 साल की रत्ना ज़रख़रीद गुलाम है, जिसका मनचाहा इस्तेमाल करने की आज़ादी उसका पति कहे जाने वाले व्यक्ति के अलावा किसी और को भी है.

दरअसल, ऐसे परिवारों में कई मामलों में दो-तीन भाइयों के लिए अलग-अलग पत्नी ख़रीदने की जगह, एक ही औरत शारीरिक संबंध के मामले में सभी भाइयों की पत्नी होती है, सास-ससुर जैसे बड़े बुज़ुर्ग अक्सर सब कुछ जानते हुए चुप रहते हैं.

रत्ना बताती हैं कि बात पिटाई और मज़दूरी कराने तक ही नहीं रुकती.

"मेरा जेठ मेरे पति के सामने मेरा हाथ पकड़कर मुझे कमरे के भीतर खींच ले जा रहा था, लेकिन मेरे पति ने कुछ नहीं कहा. मुझे कुछ नहीं चाहिए, चाहिए तो केवल इज़्जत."

बिकने के लगभग 11 साल बाद रत्ना के दो बेटे हैं, लेकिन ख़रीदार अब रत्ना को रखने को तैयार नहीं हैं. रत्ना बताती हैं, "अब कहते हैं कि लड़कों को यहाँ छोड़कर त्रिपुरा वापस चली जा. बच्चे होने के पहले तब भी ठीक था, लेकिन अब सास और जेठ मिलकर पीटते हैं और मेरा पति खड़ा-खड़ा देखता है."

'मेरा सौदा'

रत्ना अपनी पांच बहनों और मां-बाप के साथ अगरतला में रहतीं थीं. रत्ना सिर्फ़ दूसरी क्लास तक पढ़ी हैं. पिता की कमाई इतनी नहीं थी कि बेटियों को आगे पढ़ा पाते. एक दिन हरियाणा में रहने वाले रिश्ते के चाचा वहां आए और रत्ना को हरियाणा घुमाने की बात कही.

पिता के साथ रत्ना जब हरियाणा आईं तो उन्हें नहीं पता था कि उनकी धोखे से शादी कर दी जाएगी. रत्ना बताती हैं, "मेरे पिता को शराब पिलाकर एक कमरे में बंद कर दिया और दूसरे कमरे में मेरी शादी करा दी. चाचा ने मेरा सौदा तीस हज़ार रुपए में तय किया था."

रत्ना की शादी जिस आदमी से हुई है, वह ड्राइवर है और सात हज़ार रुपए महीना कमाता है. परिवार के पास नाम भर को ज़मीन है.

मैंने रत्ना की सास से पूछा कि वह अपने बेटे के लिए ख़रीदकर दुल्हन क्यों लाईं? तो उन्होंने कहा, "मैंने तो सोचा था कि मेरे बेटे का घर बसेगा. मुझे क्या पता था मेरे गले में यह नागिन लिपट जाएगी."

रत्ना अपना दर्द भी ठीक से बयान नहीं कर पाती. उन्होंने कहा, "जब मेरी शादी हुई थी तब मुझे हरियाणवी भाषा नहीं आती थी, कुछ समझ नहीं आता था. फिर धीरे-धीरे लोगों से बात करते हुए यहां की भाषा सीखी."

रत्ना कहती हैं, "मुझे अब ख़र्चा भी नहीं दिया जाता, और बच्चों की फ़ीस देनी भी बंद कर दी है. ख़र्चा मांगने पर मार-पिटाई करते हैं. जब मैं मज़दूरी करने बाहर जाती हूं, तो मेरे चरित्र पर कई तरह के लांछन लगाए जाते हैं."

'वोट क्या होता है?'

रोज़ की मार-पिटाई से छुटकारा पाने के लिए रत्ना अब पास ही के गांव में अपनी रिश्ते की एक बहन के पास रहती हैं. उनकी बहन भी ख़रीदकर हरियाणा लाई गईं थीं लेकिन क़िस्मत से उनकी हालत इतनी बुरी नहीं है.

रत्ना को अपने गांव, घर और अपनी मजबूरियों के बारे में पता है लेकिन यह नहीं पता कि वो किस देश में रहती हैं, नागरिक होने का क्या मतलब है, उनके अधिकार क्या हैं, संसद क्या है.

रत्ना ने पिछले लोकसभा चुनावों में वोट दिया था. रत्ना कहती हैं, "ससुराल वालों ने जिस बटन को दबाने को कहा, वही बटन दबा दिया", लेकिन रत्ना को नहीं पता कि वोट देने से क्या होता है.

उन्होंने कहा, "इस वोट का क्या होता है? इसका मेरी ज़िंदगी में कोई मतलब नहीं."

जब उनसे पूछा गया कि सरकार क्या होती है तो उन्होंने कहा, "गाँव बस्ती के सबके ऊपर सरकार होती है, बस इतना पता है."

रत्ना बताती हैं, "मुझे यहां रहते हुए इतने साल हो गए. वोट मांगने कुछ लोग आते हैं, लेकिन कभी किसी ने मेरी जैसी ख़रीदकर लाई गई लड़कियों की बात नहीं की."

जहां रत्ना ख़रीदकर लाई गई थीं उसी खेड़ा गाँव के सरपंच रामेश्वर दयाल की छह बेटियां हैं. सभी पोस्ट ग्रेजुएट हैं. उनकी तीन बेटियों की सरकारी नौकरी लग चुकी है. वह कहते हैं, "मुझे तो अब लड़कों से अच्छी ये लड़कियां लग रहीं हैं."

रामेश्वर दयाल को भी पता है कि रत्ना को ख़रीदकर लाया गया था. वह बताते हैं, "हमारे गांव में 10-12 लड़कियों को ख़रीदकर लाया गया है."

रामेश्वर दयाल ने बताया, "प्रशासन इस मामले में कुछ नहीं कर रहा है. पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से ही लड़कियां लाई जा रही हैं."

'ग़ैरक़ानूनी अल्ट्रासाउंड'

रामेश्वर कहते हैं, "इस समस्या की जड़ में ग़ैरक़ानूनी ढंग से चल रहा अल्ट्रासाउंड का धंधा है, जिस पर प्रशासन नियंत्रण नहीं कर पा रहा है. लड़की होने का पता चलते ही लोग गर्भपात करा देते हैं."

पूर्वोत्तर राज्यों से ख़रीदकर लाई जा रही लड़कियों के बारे में पूछे जाने पर इलाक़े के थाना इंचार्ज पवन हुड्डा ने बताया, "यहां पर ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है. मुझे तीन साल इस ज़िले में हो गए. यहां पर ऐसा नहीं है."

खेड़ा गांव के सरपंच से मिली जानकारी थानेदार को देने पर उनका जवाब था, "गांव में गुटबाज़ी होती है. कोई बाहर से शादी करके लाता है तो कुछ लोग बोलते हैं कि ख़रीदकर शादी कर ली."

अवैध तरीक़े से चल रहे अल्ट्रासाउंड धंधे के बारे में बात करने पर पवन हुड्डा का कहना था, "प्रशासन की तरफ से कोई कोताही नहीं है. चोरी हर जगह होती है. रामराज्य में भी होती थी. यह काम चोरी-छिपे होता है. प्रशासन के सामने नहीं हो सकता."

लंबी कोशिश के बाद रत्ना को जब भारत, लोकतंत्र और संसद, नागिरक अधिकार और वोट की ताक़त समझाई गई और फिर पूछा गया कि अब वह सरकार से क्या चाहती हैं तो रत्ना ने कहा, "मेरा पीला कार्ड बन जाए, एक घर और खेत मिल जाए. मेरे बच्चे पढ़-लिख जाएं, मेरे पति मुझे अच्छी तरह रखें और कोई भी बाहर की लड़की लाकर उसे दुखी न करें. मेरे लिए बस यही काफ़ी है."

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