केजरीवाल जितने बड़े नेता उससे बड़े ब्रैंड

  • प्रद्युमन महेश्वरी
  • मीडिया विश्लेषक, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

परंपरागत तौर पर किसी ब्रैंड की परिभाषा तो यही है इससे किसी उत्पाद या सेवा की पहचान दूसरों से अलग और ख़ास हो जाती है.

लेकिन समय के साथ ब्रैंड की परिभाषा भी बदली है, अब कारोबार करने की स्मार्ट समझ और लोकप्रियता हासिल करने के लिए ज़रूरी मार्केटिंग तकनीकों को जानने वालों को भी ब्रैंड कहा जाने लगा है.

हालांकि इसका इस्तेमाल अधिकांशत अच्छे नज़रिए से नहीं होता, लेकिन इससे यह ज़ाहिर हो जाता है कि कोई आदमी या संस्था कितनी बड़ी हो चुकी है.

उदाहरण के लिए अमिताभ बच्चन या फिर शाहरुख़ ख़ान या फिर आमिर ख़ान (हालांकि उन्हें यह चिंता सता रही होगी कि स्नैपडील से हटाए जाने पर वे इकलौते ऐसे ख़ान होंगे जिनके पास कोई विज्ञापन नहीं होगा.)

लेकिन क्या महात्मा गांधी एक ब्रैंड थे? निश्चित तौर पर, वे शायद देश के सबसे बड़े ब्रैंड थे.

क्या बाल गंगाधर तिलक ब्रैंड थे? हां, उनका विश्वास भी कितना ज़बर्दस्त था- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है.

क्या इंदिरा गांधी ब्रैंड थीं? एकदम थीं, राजनीति पर उनके असर की झलक अब भी मौजूद है.

नरेंद्र मोदी भी निश्चित तौर पर ब्रैंड हैं, लेकिन उनके मामले में ये कहा जा सकता है कि उनके ब्रैंड का सफ़र दो चरणों में हैं. एक तो वह हिस्सा है जिसे प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके मैनेजरों ने खड़ा किया था. उसके बाद दूसरा, प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने करिश्मे और काम से उन्होंने बनाया है.

इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल भी एक आम आदमी से ब्रैंड बन गए हैं.

केजरीवाल को अभी महात्मा गांधी, तिलक, इंदिरा और तो और मोदी जितना बड़ा नेता भी कहना कठिन है पर उनका ब्रैंड मोदी से कतई कमतर नहीं.

हालांकि उन्होंने अपनी छवि पर काम किया है और अपने बारे में उन्होंने जो भी परसेप्शन बनाए हैं, वह उनकी सबसे बड़ी ताक़त और सबसे बड़ी कमज़ोरी को दर्शाता है.

उनकी कामयाबी का ग्राफ़ काफी प्रभावी है. वे आईआईटी खड़गपुर से निकले मैकनिकल इंजीनियर हैं. इसके बाद भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के तौर पर वे आयकर विभाग में संयुक्त आयुक्त रहे. 2006 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए उन्हें रमन मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है.

इसके बाद अपनी विभिन्न पृष्ठभूमि वाले विश्वस्त सहयोगियों की बदौलत वे भारतीय राजनीति में नौसिखिए से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद तक पहुंच गए. वो भी एक बार नहीं दो बार. दूसरी बार तो जोरदार जीत हासिल कर वे मुख्यमंत्री बने.

दिल्ली की जनता ने उन्हें जोरदार बहुमत तब दिया जब राजनीतिक विश्लेषक ये मान रहे थे कि केजरीवाल जिस एजेंडे के साथ काम करना चाहते हैं वह ना तो व्यवहारिक है और ना ही वास्तविक. लेकिन केजरीवाल ने अपना रास्ता बना लिया.

इन सबने उन्हें एक अनोखे ब्रैंड के तौर पर स्थापित कर दिया. उनमें ब्रैंड को तौर पर गुण भी कम नहीं हैं.

  • वे दूसरों से अलग नजर आते हैं.
  • वे अपनी बात पर अड़े रहते हैं और सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करते.
  • वे ईमानदार हैं और निष्ठावान हैं. वे बदलाव लाना चाहते हैं. <image id="d5e416"/>
  • वे गंभीर विकल्पों को अाजमाने के इच्छुक भी हैं. ऑड-ईवन की योजना इसका उदाहरण है.
  • इन सबके अलावा वे पब्लिसिटी के लिए विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना भी जानते हैं.
  • वे सोशल मीडिया का बेहतरीन इस्तेमाल करने वाले पहले नेता रहे हैं. इसके बाद उन्होंने रेडियो और व्हॉट्सऐप को भी अपनाया.
  • टेलीविजन और प्रिंट में आने वाले उनके विज्ञापन लोगों की नब्ज़ को पकड़ते हैं और विज्ञापन पर ज़्यादा पैसे खर्च करके वे इसे आक्रामक भी बना रहे हैं.
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इन सात तथ्यों को अगर बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं वाली किसी संस्था के ब्रैंड विशेषज्ञ और मार्केटिंग प्रमुख के सामने रखेंगे तो वे आपको बताएंगे कि किसी भी उपभोक्ता ब्रैंड के कामयाब होने के लिए ये पहलू सबसे ज़रूरी हैं. ये सभी पहलू अरविंद केजरीवाल में मौजूद हैं.

हालांकि, दिल्ली की जनता ब्रैंड केजरीवाल को पर दो बार मुहर लगा चुकी है लेकिन ऐसा होता रहेगा इसकी गारंटी नहीं है. जैसा कि किसी होटल या रेस्टोरेंट के साथ होता है अगर क्वॉलिटी का ध्यान न रहा गया तो उनके बारे में राय तेज़ी से गिर भी सकती है.

अगर कोई एयरलाइन इनफ़्लाइट सेवा या समय का ध्यान नहीं रख पाती है तो उसके ज़्यादातर स्थाई ग्राहक उसे छोड़ देते हैं. नेताओं का हाल इससे अलग नहीं है. ये बात अलग है कि अगर कोई और विकल्प हो ही ना. वरना नेता जो अपने वादे पूरे नहीं करते वो अपने ब्रांड की अहमियत गँवा देते हैं.

इन सबके अलावा उनमें एक ख़ास पहलू और है- वे अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक तक जा सकते हैं. भले इसके चलते लोग उन्हें नमूना भी कहने लगें, पीठ पीछे उनका मज़ाक उड़ाएं लेकिन वे अपने लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं.

आख़िरकार वे महज एक योद्धा नहीं रहे हैं, वे अब मुख्यमंत्री हैं और एक बेहतरीन ब्रैंड भी.

(लेखक के निजी विचार हैं. लेखक मीडिया मामलों के विश्लेषक हैं. एमएक्सएम इंडिया और हैप पोस्ट के संस्थापक संपादक भी हैं. इनका ट्विटर हैंडल है- @pmahesh)

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