ज़मीन न भारत में न पाक में, इंतज़ार मुआवज़े का

  • सलमान रावी
  • बीबीसी संवाददाता, पंजाब के अजनाला से
पंजाब के किसान

बंटवारे के बाद कई साल तक भारत और पकिस्तान की सीमा पर ना कोई दीवार थी और ना ही कोई और रुकावट.

मगर पंजाब में चरमपंथ फैलने के बाद वर्ष 1989 से कंटीले तारों को लगाने का काम शुरू हुआ था. यह काम पूरा हुआ और अब कोई ऐसी जगह नहीं है जहां कंटीले तार ना लगे हों.

भारत के बंटवारे के बाद भारत और पकिस्तान की सीमा तय की गई और सीमा पर 'नो मैंस लैंड' के लिए भारतीय किसानों को 11-11 फीट ज़मीन देनी पड़ी.

पाकिस्तान की सीमा से लगे गावों के रहने वालों का कहना है कि जब 'नो मैंस लैंड' के लिए ज़मीन ली गई थी तो उन्हें मुआवज़े का आश्वासन मिला था.

भारत के बंटवारे के 70 साल होने को हैं मगर गाँव वालों का आरोप है कि उन्हें अपनी 11 फीट की ज़मीन का मुआवजा आज तक नहीं मिल पाया है.

फिर कंटीले तारों को लगाने की बारी आई और इस काम के लिए किसानों को 44 फीट ज़मीन फिर देनी पड़ी. यानी कंटीली तारों की बाड़ के आगे 22 फीट और बाड़ के पहले 22 फीट.

तारों को लगाने के लिए ज़मीन का अधिग्रहण किया गया और सरहद के पास के गावों के किसानों का आरोप है कि उन्हें इसका भी मुआवजा नहीं मिला.

पंजाब के किसान

पंजाब के इलाके में किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठन 'जम्हूरी किसान सभा' के सतनाम सिंह अजनाला कहते हैं कि बंटवारे के बाद जो किसान पाकिस्तान से भारत चले आए और सरहद के पास के गांवों में बसे उनके पास कोई ज़मीन नहीं थी, इसलिए वो सरकारी ज़मीन पर खेती कर अपनी गुज़र-बसर करने लगे.

वो कहते हैं, "यह बात 1952 की है जब पकिस्तान से भारत आये किसानों को कहा गया था कि वो सरहद के पास मौजूद सरकारी ज़मीन पर खेती कर अपना गुज़र बसर कर सकते हैं. उनसे कहा गया कि यह ज़मीन उनके नाम पर स्थानांतरित कर दी जाएगी. मगर अब बंटवारे के 70 साल होने को हैं मगर आज तक किसानों को उस ज़मीन का मालिकाना नहीं मिल पाया है.''

अजनाला से 10 किलोमीटर दूर रावी नदी बहती हैं जो कभी पाकिस्तान की तरफ बहती है तो कभी भारत की सरहद के अन्दर.

रावी के किनारे कई गाँव बसे हैं जहां के ज़्यादातर किसानों की ज़मीन कंटीली तारों के उस पार है.

सलविंदर सिंह
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सलविंदर सिंह के मुताबिक चुनाव के वक्त किसानों के हक की बात तो होती है, पर बाद में कुछ नहीं होता

खानवाल पिंड यानी खानवाल गाँव के सरपंच सलविंदर सिंह कहते हैं कि सरकारी पट्टे के मालिकाना हक के लिए वो लंबे अरसे से मांग करते आ रहे हैं.

वो कहते हैं कि हमेशा चुनाव के वक़्त सभी राजनीतिक दल किसानों को सरकारी पट्टों का मालिकाना हक दिलाने का वादा करते हैं मगर चुनाव के बाद फिर कोई इस पर कुछ नहीं करता.

सिलक्खन सिंह पिंड दल्ला राजपूबताना के सरपंच हैं और कहते हैं कि कंटीले तारों के लिए जो ज़मीन किसानों ने दी या फिर जो ज़मीन 'नो मैंस लैंड' के लिए दी उसके मुआवज़े के लिए भी किसान सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते थक गए हैं.

सरहद के गावों में से एक है साहोवाल जहाँ मेरी मुलाक़ात किसानों के एक हुजूम से हुई.

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नशा दूर करने के लिए 'अफ़ीम की मांग'

इन्ही में से एक हैं ऋषिपाल सिंह जिनके खेत भी कंटीली तारों के उस पार हैं. ऋषिपाल का कहना है कि अब काश्तकारी उनके और उनके गाँव के लोगों के लिए घाटे का धंधा है.

ऋषिपाल कहते हैं कि सरहद के किसानों को कई चीज़ें एक साथ झेलनी पड़ रहीं हैं. वो कहते हैं कि वैसे कंटीले तारों के उस पार जाकर खेती करने के लिए सुबह आठ बजे से लेकर शाम के पांच बजे तक का वक़्त निर्धारित किया गया है.

मगर उनका आरोप है कि सीमा सुरक्षा बल के जवान कंटीले तारों पर बने गेट से उन्हें कभी दस बजे तो कभी 11 बजे ही जाने देते हैं.

उनका कहना है कि उसी तरह शाम को भी पांच बजे की बजाय उन्हें कभी दो बजे भी खेतों से वापस बुला लिया जाता है.

पंजाब के किसान
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ऋषिपाल सिंह के मुताबिक पाकिस्तान से आए जंगली जानवर उनकी फ़सल को नुकसान पहुंचाते हैं

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ऋषिपाल कहते हैं, "अब खेत में काम करने का समय ही ना मिले तो हम क्या उगायें?"

किसान बताते हैं कि कंटीले तारों के उस पार पकिस्तान से आए जंगली सूअर और हिरण उनके खेतों को बर्बाद कर देते हैं जिसकी वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

सहोवाल के नौजवान जैसे गुरजीत सिंह इस बात से नाराज़ हैं कि जब उनके लिए कास्तकारी एक घाटे का सौदा बन गयी है, सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिलती है.

इसी गाँव के जगतार सिंह कहते हैं कि चूँकि सरकारी पट्टे को किसानों के नाम पर स्थानांतरित नहीं किया गया है इसलिए बैंक भी किसानों को ऋण नहीं देते हैं.

सरकारी महकमे के लोगों का कहना है कि गाँव वालों को पहले 3,500 रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से सिर्फ दो बार मुआवजा दिया गया.

फिर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देश पर पिछले साल किसानों को 10 हज़ार रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से एक बार मुआवजा मिला.

मगर सरहद के पास खेती करने वाले किसान चाहते हैं कि उनकी परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हैं कि उन्हें हर साल कम से कम 25 हज़ार रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से दिया जाए.

सतनाम सिंह
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जम्हूरी किसान सभा के अध्यक्ष सतनाम सिंह अजनाला

इसी मांग को लेकर किसानों का संगठन 'जम्हूरी किसान सभा' संघर्ष कर रहा है.

संगठन के अध्यक्ष सतनाम सिंह अजनाला कहते हैं कि आए दिन पकिस्तान के साथ पैदा होने वाले तनाव का दंश भी सरहद के पास खेती करने वाले किसानों को ही झेलना पड़ता है.

वो कहते हैं, "जब भी पकिस्तान के साथ रिश्ते बिगड़ते हैं तो किसानों के कंटीले तारों के उस पार खेती करने जाने पर रोक लगा दी जाती है. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पैदा हुए हालात के बाद तो गाँव ही ख़ाली करवा दिए गए. ऐसे में किसानों के लिए ज़िंदगी काफी मुश्किल बनकर रह गयी है."

जम्हूरी किसान सभा की मांग है कि किसानों को हर साल 25 हज़ार रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए.

पंजाब के किसान

किसानों का कहना है कि सरहद पर रहने के वजह से उन्हें मूलभूत सुविधाओं से भी दूर रहना पड़ रहा है क्योंकि हर चीज़ के लिए उन्हें 10 किलोमीटर दूर अजनाला जाना पड़ता है.

आसपास उद्योग नहीं होने की वजह से सरहद के इलाकों में बेरोज़गारी भी बढ़ रही है और नशाखोरी भी.

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