'सुरंग तो ठीक, पर कश्मीर के असल मसले पर बात क्यों नहीं होती?'
- माजिद जहांगीर
- श्रीनगर से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को जम्मू-कश्मीर राजमार्ग पर भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग का उद्घाटन करने के बाद अपने भाषण में इसे कश्मीर की तक़दीर बदलने वाली सुरंग कहा था.
प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा था कि अब ये कश्मीरी नौजवानों पर है कि वो या तो टेररिज़्म का रास्ता चुनें या टूरिज़्म का. मोदी के इस बयान पर कश्मीर के आम लोगों, राजनीतिक दलों और अलगाववादियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई है.
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग के 48 वर्षीय ख़ुर्शीद अहमद का कहना है, "सुरंग बनाना अच्छी बात है, लेकिन जिस तरह से मोदी ने कश्मीरियों को आतंकवाद से जोड़ा है, मैं पूछना चाहता हूँ कि कश्मीर में आतंक कौन फैला रहा है?"
ख़ुर्शीद ने कहा, "जिस तरह की बात नरेंद्र मोदी ने की है कि कश्मीरी नौजवान टेररिज़्म या टूरिज़्म चुनें, लेकिन उनकी जो फ़ौज यहां है क्या वो आतंक नहीं फैला रही है. हमारे बच्चों को मार रही है, अंधा बना रही है. मां-बहनों की इज़्ज़त लूट रही है. क्या ये आतंक नहीं है?"
कपड़ों की दुकान चला रही 45 साल की निग़त का कहना है कि सुरंग तो मायने रखती है, लेकिन जो असल मसला है उस पर बात क्यों नहीं होती?
निग़त कहती हैं, "हमारा जो मसला है वो है कश्मीर की आज़ादी, उस पर बात नहीं होती. यहाँ के नेता और वहाँ के नेता भी बोलते हैं कि मेज़ पर बैठकर बात होगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है. आख़िर बात कब होगी? हमने बंदूक भी छोड़ी और फिर पत्थर उठाए, लेकिन तब भी कुछ नहीं हुआ. टनल से मसला हल नहीं हो सकता. हर मां की गोद उजड़ी हुई है."
ताहम श्रीनगर की रहने वाली 35 साल की साबिया कहती हैं, "इस सुरंग से जम्मू-श्रीनगर का हमारा सफ़र आसान होगा. कश्मीर आने वाले पर्यटकों को आसानी होगी. ये तो अच्छी बात है."
साबिया जैसे ही ख़यालात का इज़हार 30 साल के जावीद अहमद भी करते हैं.
अनंतनाग में होटल चलाने वाले 60 साल के महमूद सादिक़ कहते हैं कि सुरंग से अगर मसला हल होता तो ऐसा कब का हो गया होता.
सादिक़ कहते हैं, "यहाँ तो इतने शहीद हो रहे हैं. मेरे जैसे 60 साल के बूढ़े इंसान पर भी पत्थरबाज़ी का मामला दर्ज है. मोदी जी ने कहा कि कुछ नौजवान पत्थर मारते हैं तो कुछ पत्थरों से रोज़गार कमाते हैं. मैं तो कहूँगा कि जो कश्मीरी नौजवान सुरंग बनाने गए वो तो मजदूरी करने गए थे. कश्मीर के इतने लोग जेलों में बंद हैं, उनको अगर रिहा किया जाए तो कश्मीर की तक़दीर बदल जाएगी."
श्रीनगर के 60 साल के मोहम्मद लतीफ़ कहते हैं कि जो सुरंग बनी है उससे सफ़र आसान हो जाएगा.
कश्मीरी पंडित मानते हैं कि घाटी में विकास का जो काम हो रहा है वो तो ठीक है, लेकिन असली मसला कश्मीरी नौजवानों के दिल जीतने का है.
श्रीनगर के बर्बर शाह इलाक़े में रहने वाले संजय टीकू कहते हैं, "असल बात ये है कि मोदी सरकार कश्मीरी नौजवानों का दिल कैसे जीतेगी? कश्मीर के युवा बीते आठ साल से भारत से और भी दूर हो गए हैं और सड़कों पर आ रहे हैं."
विपक्षी दल नेशनल कॉन्फ़्रेंस के वरिष्ठ नेता डॉक्टर मुस्तफ़ा कमाल कहते हैं कि ये मसला टूरिज़्म और टेररिज़्म से जुड़ा नहीं है. देश के प्रधानमंत्री ऐसी बात कहें, ये छोटी बात लगती है और इस पर अफ़सोस ही किया जा सकता है.
अलगाववादी नेता और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मीरवाइज़ गुट के प्रवक्ता शहीद उल इस्लाम कहते हैं, "आज तक इतना पैसा ख़र्च किया गया. अगर मसला सिर्फ़ पैसों का होता तो कश्मीरी नौजवानों में इतनी नाराज़गी नहीं पाई जाती."