NFHS 5: उत्तर प्रदेश को क्या अब भी जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की ज़रूरत है?

  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

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भारत में लिंग अनुपात बेहतर हुआ है और अब 1000 पुरुष पर 1020 महिलाएं हैं. ये आँकड़े नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट में सामने आए हैं.

11 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेश के लिए बुधवार को ये सर्वे रिपोर्ट जारी की गई है. इन 11 राज्यों में उत्तर प्रदेश भी शामिल है, जहाँ की 'बढ़ती जनसंख्या' राज्य सरकार के लिए चिंता का सबब बनी हुई है.

ताज़ा सर्वे में उत्तर प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और जनसंख्या से जुड़े कई आँकड़े हैं.

इस साल जुलाई में उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने राज्य की बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए एक बिल तैयार किया था, जो काफ़ी सुर्खियों में रहा.

NFHS 5

उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन कंट्रोल  बिल में आख़िर क्या था? 

इस बिल का नाम उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन कंट्रोल, स्टेबिलाइज़ेशन एंड वेलफ़ेयर बिल था. ृइस बिल में जनसंख्या नियंत्रण के लिए 'दो बच्चों की नीति' लागू किये जाने की बात की गई थी.

प्रस्ताव था कि जो दंपत्ति 'दो बच्चों की नीति' पर अमल करें, उन्हें 'प्रोत्साहित' किया जाए और जो पालन ना करें उन्हें 'खमियाज़ा' भुगतना पड़े. उस वक़्त बिल के प्रावधान पर काफ़ी बहस भी हुई थी.

उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि इस नीति को तैयार करने का मक़सद है कि उत्तर प्रदेश का 'सर्वांगीण विकास हो.'

राज्य विधि आयोग ने जुलाई में इस बिल का ड्राफ़्ट जारी किया था, जिस पर सुझाव माँगे गए थे. सुझावों को शामिल करने के बाद दोबारा से बिल राज्य सरकार को भेज दिया है. फिलहाल बिल पर राज्य सरकार की मुहर लगनी बाक़ी है.

उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर

नए सर्वे में उत्तर प्रदेश के बारे में क्या कहा गया है?

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उत्तर प्रदेश, देश का सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला राज्य है. वहाँ कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. इस चुनाव में 'जनसंख्या विस्फोट' का मुद्दा दोबारा से उठे इससे पहले NFHS 5 के आँकड़ों के आधार पर ये समझने की कोशिश करते हैं कि क्या अब भी यहां इस तरह के क़ानून की ज़रूरत है.

इन आँकड़ों को पढ़ते समय ये ध्यान रखने वाली है कि ये सेन्सस यानी जनगणना रिपोर्ट के आँकड़ों से अलग हैं, जो हर दस साल में आते हैं.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे किसी भी राज्य में प्रजनन दर, फैमिली प्लानिंग, मृत्यु दर, जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य से जुड़े ताज़ा आँकड़े उपलब्ध कराने के नज़रिए से कराया जाता है.

इस सर्वे के आँकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में पिछले एक दशक में प्रजनन दर में कमी आई है. प्रजनन दर का मतलब है एक औरत औसतन कितने बच्चे पैदा करती है.

NFHS 4 में उत्तर प्रदेश के लिए प्रजनन दर 2.7 थी, जो इस बार घटकर 2.4 रह गई है. साल दर साल इसमें कमी आ रही है. हालांकि सर्वे के ताज़ा आँकड़ों में धर्म के आधार पर प्रजनन दर का जिक्र नहीं है. सर्वे ये नहीं बताता कि उत्तर प्रदेश में हिंदू और मुसलमान में प्रजनन दर एक-सी है या अलग- अलग है.

जब उत्तर प्रदेश का जनसंख्या क़ानून आया था उस वक़्त कई राजनीतिक दलों ने इस बिल को मुसलमानों से जोड़ा था.

प्रजनन दर एक अहम पैमाना है, जिससे जानकार पता लगाते हैं कि किसी राज्य में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है या नहीं.

परिवार नियोजन के तरीके

उत्तर प्रदेश में फैमिली प्लानिंग के तरीके

इस सर्वे में फैमिली प्लानिंग यानी परिवार नियोजन के तरीके पर भी विस्तार से बात की गई है.

उत्तर प्रदेश में 15-49 साल के उम्र वर्ग में परिवार सीमित करने के लिए नियोजन के तरीके अपनाने वालों की संख्या भी तेज़ी से बड़ी है. अब परिवार नियोजन के आधुनिक तरीके इस्तेमाल करने वालों की संख्या 44 फ़ीसदी हो गई है.

आँकड़े बताते हैं कि पुरुष कंडोम का अब ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे है, महिलाओं में नसबंदी कराने की दर कम हुई है. अब पुरुष भी इसमें आगे आ रहे हैं, ताकि परिवार नियोजन का सारा दारोमदार महिलाओं पर ही ना रहे.

लिंगानुपात

उत्तर प्रदेश में लिंगानुपात

भारत की तरह ही उत्तर प्रदेश का भी सेक्स रेशियो यानी लिंगानुपात बेहतर हुआ है. यहां पहले प्रति 1,000 पुरुषों पर 995 महिलाएं थी, लेकिन अब प्रति 1,000 पुरुष पर 1017 महिलाएं हैं.

जन्म के समय के लिंग अनुपात को भी देखें तो वो भी पहले के मुक़ाबले बेहतर हुआ है.

तो क्या नए जनसंख्या नियंत्रण बिल की क्या अब भी ज़रूरत है? और इन आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की ज़रूरत नहीं?

इस सवाल के जवाब में NFHS 5 रिपोर्ट तैयार करने वाली संस्था इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ पॉपुलेशन साइंसेज़ के निदेशक डॉ. केएस जेम्स कहते हैं, "ये सच है कि उत्तर प्रदेश में लगातार प्रजनन दर में पिछले कई सालों से कमी आ रही है. लेकिन राज्य सरकार की चिंता रिप्लेसमेंट रेशियो को लेकर रही होगी, जो कि भारत के लिए 2.1 है. हो सकता है उत्तर प्रदेश सरकार उस स्थिति को जल्द से जल्द पाना चाहती हो, और इस वजह से बिल लाने का फैसला लिया हो."

रिप्लेसमेंट रेशियो 2.1 का मतलब है, दो बच्चे पैदा करने से पीढ़ी दर पीढ़ी वंश चलता रहेगा. (प्वाइंट वन इसलिए क्योंकि कभी-कभी कुछ बच्चों की मौत छोटी उम्र में हो जाती है.)

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जनसंख्या वृद्धि दर

डॉ. केएस जेम्स के अनुमान के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में 2025 तक प्रजनन दर 2.1 पहुँच सकता है, जो रिप्लेसमेंट रेशियो के क़रीब है.

ऐसे में क्या उत्तर प्रदेश सरकार हड़बड़ी में गड़बड़ी तो नहीं कर रही?

इस सवाल के जवाब में डॉ. जेम्स ने सीधे कुछ नहीं कहा, लेकिन इतना जोड़ा कि जल्द से जल्द रिप्लेसमेंट रेशियो हासिल करने की चाहत में कोई बुराई नहीं है, मगर पॉलिसी बनाने वालों को ये ध्यान में रखना चाहिए कि लक्ष्य को हासिल करने के लिए उपाए क्या अपना रहे हैं.

दरअसल उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण बिल के प्रस्तावित ड्राफ़्ट में इसे हासिल करने के लिए 'दो बच्चों की नीति' लागू करने की बात कही गई है. कई जानकार इसे ग़लत मानते हैं.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के संयुक्त निदेशक आलोक वाजपेयी कहते हैं, उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए 'दो बच्चों की नीति' की ज़रूरत न तो जुलाई में थी, जब क़ानून का प्रस्ताव आया था, और ना ही अब है जब NFHS 5 के आँकड़े आए हैं.

हालांकि ताज़ा सर्वे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार का क्या रुख़ है, इस पर अभी कोई बयान सामने नहीं आया है. बीबीसी ने उत्तर प्रदेश के क़ानून मंत्री से फ़ोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनका जवाब नहीं मिला.

उत्तर प्रदेश में बाल विवाह

किन आँकड़ों पर योगी सरकार को चिंतित होना चाहिए?

डॉ. जेम्स के मुताबिक़ नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 में ज़्यादातर पैमानों पर उत्तर प्रदेश के आँकड़े राष्ट्रीय औसत के आसपास ही हैं. उन्हें लगता है कि 18 साल से कम उम्र में लड़कियों की शादी कराए जाने के आँकड़ों पर राज्य सरकार को ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.

उत्तर प्रदेश में अब भी 15.8 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है. हालांकि इस दर में पिछले कुछ सालों में कमी आई है. भारत में कुछ राज्यों में लड़कियों के लिए इससे भी बदतर स्थिति है. लेकिन डॉ. जेम्स का कहना है कि ये एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ अब भी सुधार की गुंजाइश है.

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